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आत्मघाती कदम: ट्रम्प के शुल्क और संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था  

ट्रम्प के शुल्क संयुक्त राज्य अमेरिका को आर्थिक नुकसान से नहीं बचा पायेंगे

Published - February 12, 2025 11:07 am IST

संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पहले कार्यकाल के आर्थिक अनुमानों से पता चलता है कि उनके प्रशासन ने लगभग 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सामानों पर जो व्यापक शुल्क लगाए थे, उसने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया। इन शुल्कों के चलते वास्तविक (मुद्रास्फीति-समायोजित) सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में शुद्ध हानि हुई, सालाना घरेलू आय में गिरावट आई और मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में नौकरियां खत्म हुईं। फेडरल रिजर्व बोर्ड के 2019 के एक शोध पत्र, ‘वैश्विक रूप से जुड़े संयुक्त राज्य अमेरिका के मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र पर 2018-2019 के शुल्कों के प्रभावों का आकलन’, में यह पाया गया कि शुल्क वृद्धि के चपेट में आने वाले उद्योगों में रोजगार में सापेक्ष कमी देखी गई। बढ़ती इनपुट लागत और प्रतिशोधात्मक शुल्क के नकारात्मक प्रभावों ने आयात संरक्षण से मिलने वाले लाभों को बेअसर कर दिया, जिससे मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र से जुड़ी नौकरियों में शुद्ध गिरावट आई। इन नौकरियों में अनुमानित 0.6 फीसदी की हानि हुई या इन बढ़े हुए शुल्कों के न रहने की स्थिति में मौजूद रहने वाली नौकरियों के मुकाबले लगभग 75,000 नौकरियां कम हुईं। इसी तरह, कांग्रेसनल बजट ऑफिस (सीबीओ) की 2019 की रिपोर्ट, ‘बजट और आर्थिक अनुमानों पर एक अपडेट: 2019 से 2029’ में अनुमान लगाया गया है कि व्यापार संबंधी बाधाएं अमेरिकी आर्थिक उत्पादन को कम कर देंगी। सीबीओ ने 2020 तक वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में 0.3 फीसदी की गिरावट और औसत वास्तविक घरेलू आय (2019 के अमेरिकी डॉलर में) में 580 अमेरिकी डॉलर की कमी का अनुमान लगाया है।

ट्रम्प द्वारा अपने दूसरे कार्यकाल में लोहे और इस्पात के आयात पर लगाया गया 25 फीसदी शुल्क मार्च 2018 की उनकी इसी किस्म की नीति का प्रतिबिम्ब है। उनके पहले कार्यकाल में, कनाडा, मैक्सिको और यूरोपीय संघ को शुरू में जून 2018 तक छूट दी गई थी, जिसके बाद संशोधित उत्तर अमेरिकी व्यापार समझौते के जरिए मई 2019 में संघर्ष विराम होने तक जवाबी शुल्क का पालन किया गया। अर्थशास्त्रियों ने इन शुल्कों की ओर इशारा किया है, जो कि बाइडेन प्रशासन के तहत काफी हद तक जारी रहे और हाल के सालों में उच्च मुद्रास्फीति में योगदान देने वाले विभिन्न कारकों में से एक बने। वर्ष 2023 में, चीन कुल 1,019 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (एमएमटीपीए) के उत्पादन, जो कि कुल वैश्विक इस्पात उत्पादन का 54 फीसदी था, के साथ वैश्विक स्तर पर इस्पात के उत्पादन में हावी रहा और इसके बाद भारत (140.8 एमएमटीपीए, 7 फीसदी) और संयुक्त राज्य अमेरिका (81.4 एमएमटीपीए, 4 फीसदी) का स्थान था। अपने घरेलू उत्पादन के बावजूद, संयुक्त राज्य अमेरिका कनाडा, मैक्सिको और ब्राजील से होने वाले इस्पात के आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर है। ऑटोमोटिव, निर्माण, उपकरण और तेल एवं गैस सहित विभिन्न उद्योगों में इस्पात एक महत्वपूर्ण सामग्री है। अमेरिकी इस्पात उद्योग ने भले ही नए शुल्कों का खैरमकदम किया है, लेकिन इस्पात के आयात के तुरंत कम होने की संभावना नहीं है क्योंकि चीन द्वारा संचालित वैश्विक अधिशेष कीमतों को प्रतिस्पर्धी बनाए रखता है। इस्पात की कीमतों में मामूली बढ़ोतरी से भी पूरी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है, जिससे किफायत के मोर्चे पर जूझ रहे उपभोक्ताओं के लिए लागत बढ़ जाएगी। अगर इतिहास के संकेत को मानें, तो ट्रम्प के शुल्क पहले से ही दबाव में चल रही अमेरिकी अर्थव्यवस्था, भले ही यह अभी भी दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, के लिए आत्मघाती आर्थिक नुकसान के एक और दौर की शुरुआत कर सकते हैं।

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